पिता की नगरी में पुत्र आराधना की धूम, व्रती महिलाओं का उमड़ा हुजूम
चंद्र दर्शन के बाद करेंगी पारण, जानें क्या कहती हैं पौराणिक कथाएं...
वाराणसी/भदैनी मिरर। संकष्टी चतुर्थी ( गणेश चतुर्थी ) पर सोमवार को लोहटिया स्थित बड़ा गणेश दरबार में आस्थावानों का सैलाब दर्शन पूजन के लिए उमड़ पड़ा। कड़ाके की ठंड और घने कोहरे में आस्थावानों नें गंगा स्नान के बाद पुत्र प्राप्ति और उसके दीर्घायु के लिए बड़ा गणेश दरबार में हाजिरी लगाई। दर्शन पूजन का सिलसिला तड़के से प्रारम्भ होकर पूरे दिन चलता रहा। दरबार में दर्शन पूजन के लिए व्रती महिलाएं लम्बी कतारों में लगी रहीं।इसके पूर्व पर्व पर पम्परानुसार महिलाओं ने सुबह नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर गंगा स्नान के बाद व्रत का संकल्प दिया। इसके बाद भगवान गणेश का दर्शन कर घर लौटी, शाम को भगवान गणेश का विधि विधान से पूजन अर्चन के बाद देर शाम चंद्र दर्शन कर अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करेंगी।
गणेश चर्तुथी को लेकर पौराणिक ग्रन्थों में वर्णित है की द्रौपदी सहित पांडवों ने इस व्रत को किया था। इसके प्रताप से कौरवों की हार हुई, पांडवों को राज्याधिकार मिला व दीर्घायु हुए। एक अन्य कथा में वर्णित है देवताओं पर अचानक विपत्ति आ गई। सभी देवता भगवान भोलेनाथ से मदद मांगने के लिए गए। उस समय भोलेनाथ के साथ उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश भी मौजूद थे। देवताओं की समस्या को सुनकर महादेव ने अपने दोनों पुत्रों से पूछा तुम दोनों मे से कौन देवताओं के कष्टों का हरण करेगा। उस समय दोनों ने स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। तब भगवान भोलेनाथ ने अपने दोनों पुत्रों की परीक्षा लेने के लिए कहा कि तुम दोनों में से जो कोई भी पहले धरती की परिक्रमा कर लेगा, वही देवताओं की मदद के लिए जाएगा। महादेव के वचन सुनकर कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मयूर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। लेकिन भगवान गणेश चिंतामग्न थे कि अपने वाहन चूहे से धरती की परिक्रमा कैसे करें। इस तरह तो उनको बहुत समय लग जाएगा। तभी अचानक गणेश के मन में एक विचार आया और वह अपने माता-पिता महादेव और पार्वती की सात परिक्रमा कर उनके चरणों में बैठ गए। कार्तिकेय जल्द पृथ्वी की परिक्रमा करके लौट आए और स्वयं को विजेता बताने लगे। उस समय भोलेनाथ ने श्रीगणेश से परिक्रमा पर न जाने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक बसे हुए हैं। महादेव गणेश के उत्तर से बेहद प्रसन्न हुए और उनको देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दे दी और कहा कि जो भक्त चतुर्थी तिथि के दिन तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में अर्घ्य देगा उसको तीनों तरह के संतापों से मुक्ति मिल जाएगी