साची जोत जगाते हैं तानाबाना के स्वर सूत्र
सुफियाना गायकी को जुदा अंदाज दिया युवा गायकों ने
वाराणसी। भरे बाजार खड़े होकर दुनियां को खरी-खरी सुनाने वाले कबीर साहेब कि सपट बयानी की टूट चुकी रवायत को एक बार फिर नई कड़ियों से बांधा है सूफियाना मिजाज वाले कुछ नौजवानों ने। देवेंद्र दास देव, डॉ हरीश, डॉ भागीरथी, उमेश कबीर, कृष्णा और गौरव ये नौजवान खंजड़ी और करताल पर कबीर साहेब के दोहों और सखियों को सुर-ताल के पंखों की नई उड़ाने दे रहे हैं। बदले में काशी के फक्कड़ी मिजाज से प्रेरणा ले रहे हैं। युवा सूफी गायकों ने कबीर की रचनाओं को स्वर देकर संगीत की दुनिया में एक नया संसार रचा है। उनके गायन में वह सबकुछ मौजूद है जो अब तक गायकी कि लीक पकड़ने से बचा है। देवेंद्र बताते हैं कि तानाबाना कबीरी विचार का जीवंत प्रवाह है। तानाबाना के माध्यम से हम कबीर अध्यात्म के उच्च शिखर को स्पर्श करने का उपदेश देते है।
ताना एक ऐसा ढांचा या मार्ग विस्तार है जो आध्यात्मिक स्वरूप स्पष्ट करता है और बाना उस ढांचे या मार्ग विस्तार में सुचारू यात्रा करने की एक अद्वितीय शक्ति है। सामान्य अर्थों में तानाबाना के माध्यम से ही हमें स्वयं का बोध हो सकता है और हम अध्यात्म तत्व को जानने में सक्षम हो सकते हैं। इसलिए कबीर के पदों को अलग अन्दाज में प्रस्तुत करने वाले इस समूह का नाम हमने तानाबाना रखा है।देवेंद्र कहते हैं कि आज का युवा वर्ग स्तुति, भजन, आरती जैसे धार्मिक संगीत से दूर होता जा रहा है। जिससे इस माध्यम से मिलने वाले ज्ञान से भी वंचित रह जा रहा है। तानाबाना समूह ने इन्ही बातों को ध्यान में रखकर कबीर के पदों को ऐसा सांगीतिक स्वरूप दिया है जिसे सुनते ही युवा वर्ग इसे जानने के लिए उत्सुक हो जाये। तानाबाना सांगीतिक समूह का सदस्य बनने के लिए सबसे बड़ी शर्त है कबीर के आदर्शों पर चलना। इस समूह के जितने भी सदस्य हैं वे सभी कबीर के विचारों के अनुगामी हैं क्योंकि कबीर के पदों को गाने के लिए न सिर्फ संगीत के साथ पदों का वर्णन करना है बल्कि उनके भावों का रमण भी करना है।