छठ पर्व: गंगा माई के झिलमिल पनिया, नइये खेवेला मल्लाह..$$$
डूबते सूर्य को दिया अर्घ, घाटों पर रहा शहर...
वाराणसी। भगवान भास्कर के कठिन व्रत डाला छठ के तीसरे दिन शनिवार को डूबते सूर्य को प्रणाम करने के लिए व्रती महिलाओं संग परिजनों का रेला गंगा घाटों पर फैली दुश्वारियों के बीच घाटों, कुंडों, तालाबों और सरोवरों पर उमड़ा रहा। दोपहर बाद से ही व्रती महिलाओं ने घाटों की ओर रुख कर लिया। ज्यादातर लोग पारंपरिक परिधान में धोती और गंजी पहने माथे पर फल का दौरा लेकर घाट तक पहुंचे तो वही व्रती महिलाएं हाथ में ज्योति लेकर छठ गीत ' कांच ही बांस की बहंगिया, बहँगी लचकत जाए...' 'गंगा माई के झिलमिल पनिया, नइये खेवेला मल्लाह..' गाते पहुंची। वैसे एक दिन पूर्व ही लोग घाट पर पहुंचकर अपनी वेदी बनाकर जगह सुरक्षित रख लिए थे लेकिन दो बजते बजते घाटों पर भारी भीड़ उमड़ आई। चार बजते-बजते स्थिति यह हो गई की सामनेघाट से लेकर राजघाट तक केवल नरमुंड ही दिखाई दे रहा था। जगह-जगह बैरिकेट कर पुलिस ने घाट पर जाने वाले रास्ते को रोक रखी थी। देर शाम तक श्रद्धालुओं का एक तरफ से घाट को जाने का क्रम जारी था तो वही दूसरी तरफ ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती महिलाएं सुबह पुनः घाट आने के संकल्प के साथ घर को वापस लौटी।
वहीं घाटों पर अत्यधिक भीड़ देखते हुए प्रशासन द्वारा सुरक्षा की पुख्ता इंतजाम किये गए थे। श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी न हो इसके लिए घाटों पर गंगा तट पर बैरिकेटिंग कर जल पुलिस तैनात थी।
पुत्र के साथ परिवार के सुख-शांति के लिए रखा जाने वाला यह कठिन लोकाचारी व्रत विहार के बाद यूपी, दिल्ली सहित अन्य राज्यों तक पहुंच गया है। तीन दिन पहले नहाय-खाय के साथ शुरु होने वाला यह व्रत उगते भास्कर को अर्घ्य देने के बाद पूरा होता है। इस व्रत को लेकर लोगों में इस कदर श्रद्धा हिलोर मारती है कि वह सप्ताह भर पहले से ही छुट्टी लेकर घर पहुंच जाते है और महिलाओं संग पुरुषों की भी भागीदारी होती है। इतना ही नहीं भोजपुरी गायक भी अपना छठ व्रत की महिमा को लेकर एल्बम निकालते है।
वैसे छठ का व्रत काफी कठिन व्रत माना जाता है। इस दौरान दो दिन तक बिना पानी ग्रहण किए व्रत रहना होता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय होता है। इस दिन व्रती नदी में या घर पर ही जल में गंगा जल डालकर स्नान करता है और फिर नए वस्त्र धारण करने के बाद लौकी चावल व अन्य भोजन ग्रहण करती हैं। कार्तिक शुक्ल पंचमी को छठ का व्रत रखा जाता है तथा शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। यही खरना होता है जिसमें अन्न और जल के बिना रहा जाता है। इसमें गुड़ की खीर बनती है। इसके बाद घाटों पर भगवान सूर्य को अर्ध्य देने की परंपरा शुरू होती है। जिसमें पहले दिन डूबते सूर्य को व दूसरे दिन उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं।